तरसती निगाहें गुजरा जमाना, मुश्किल है मुख से कुछ क
"तरसती निगाहें गुजरा जमाना,
मुश्किल है मुख से कुछ कह पाना I
हाथ में अन्न माथे की शिकन,
जीवन का कैसा ये रंग ?
कापता तन और उदर की अग्न,
है इसलिए इतना विरक्त सा मन ।
कुछ करने का मन पर शरीर अंपग,
शायद इसीलिए इतनी आंखें हैं नम ।"
तरसती निगाहें गुजरा जमाना,
मुश्किल है मुख से कुछ कह पाना I
हाथ में अन्न माथे की शिकन,
जीवन का कैसा ये रंग ?
कापता तन और उदर की अग्न,
है इसलिए इतना विरक्त सा मन ।
कुछ करने का मन पर शरीर अंपग,
शायद इसीलिए इतनी आंखें हैं नम ।