तरसती निगाहें गुजरा जमाना, मुश्किल है मुख से कुछ कह पाना I हाथ में अन्न माथे की शिकन, जीवन का कैसा ये रंग ? कापता तन और उदर की अग्न, है इसलिए इतना विरक्त सा मन.
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