#LabourDay जो लोहे को पिघलाकर उसका आकार बदल देते | हिंदी कविता

"#LabourDay जो लोहे को पिघलाकर उसका आकार बदल देते है वो अपने पसीने की धार से विकास की रफ्तार बदल देते है वो हसता जब भी है वहाँ उम्मीदो के सावन बरस देते है उसने जहाँ हूंकार भरी वहाँ विकास के बादल गरज देते हैं वो परिवार न जाने क्यूँ अपने सपनो के दाम कम कर लेते हैं अपनी खुशियों की बौछारो से ही वो खेतो को नम कर देते हैं भोजन, भवन, सड़क, मशीन, वाहन, के कारीगर कहलाते है जनाब वो मजदूर ही होते हैं जो देश की तकदीर बदल देते है @अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस ©dineshparmar"

 #LabourDay  जो लोहे को पिघलाकर उसका आकार बदल देते है
वो अपने पसीने की धार से विकास की रफ्तार बदल देते है 
वो हसता जब भी है वहाँ उम्मीदो के सावन बरस देते है 
उसने जहाँ हूंकार भरी वहाँ विकास के बादल गरज देते हैं 
वो परिवार न जाने क्यूँ अपने सपनो के दाम कम कर लेते हैं 
अपनी खुशियों की बौछारो से ही वो खेतो को नम कर देते हैं 
भोजन, भवन, सड़क, मशीन, वाहन, के कारीगर कहलाते है 
      जनाब वो मजदूर ही होते हैं जो देश की तकदीर बदल देते है        

@अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस 
©dineshparmar

#LabourDay जो लोहे को पिघलाकर उसका आकार बदल देते है वो अपने पसीने की धार से विकास की रफ्तार बदल देते है वो हसता जब भी है वहाँ उम्मीदो के सावन बरस देते है उसने जहाँ हूंकार भरी वहाँ विकास के बादल गरज देते हैं वो परिवार न जाने क्यूँ अपने सपनो के दाम कम कर लेते हैं अपनी खुशियों की बौछारो से ही वो खेतो को नम कर देते हैं भोजन, भवन, सड़क, मशीन, वाहन, के कारीगर कहलाते है जनाब वो मजदूर ही होते हैं जो देश की तकदीर बदल देते है @अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस ©dineshparmar

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