न चाह कर भी इतनी दूरियां बना बैठे। सब कुछ पा कर सब
"न चाह कर भी इतनी दूरियां बना बैठे।
सब कुछ पा कर सब कुछ गवाँ बैठे।।
हाल-ए-जिंदगी जहमत बना बैठे।
तू ही मेरा सब कुछ थी जिसे हम गवाँ बैठे।।
-हिमाँशुदीक्षित"
न चाह कर भी इतनी दूरियां बना बैठे।
सब कुछ पा कर सब कुछ गवाँ बैठे।।
हाल-ए-जिंदगी जहमत बना बैठे।
तू ही मेरा सब कुछ थी जिसे हम गवाँ बैठे।।
-हिमाँशुदीक्षित