जिंदगी में कहीं मैं ज़िंदगी ढूंढता हूं!
ढूंढने जब चलूं एक खुशी ढूंढता हूं!
सूरतें आदमी सी मिली हर तरफ़!
आदमी में भी मै आदमी ढूंढता हूं!
भूलसे हम गये शक़्ल तक इन दिनों!
मैं तो फिर से वहीं सादगी ढूंढता हूं!
पाँव तक टोकने लग गये अब मुझे!
दौड़ने की वज़ह लाज़िमी ढूंढता हूं!
जो लबों पर चढ़े,फिर उतर न सके!
अब तो ऐसी कहीं शायरी ढूंढता हूं!
ढूँढ़ ही लूंगा मैं शराबों में दरिया कई!
उस कदर की कोई तिश्नगी ढूंढता हूं!
जो शिकायत करूँ सूखे दरिया से मैं!
अपनी आँखों मे भी मैं नमी ढूंढता हूं!
©अनूप 'समर'
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