अनाथ कौ नाम सनाथ भयौ,
जब दर्शन पाये बिहारी के ।
वा रूप की छ्वी कु निरखत ही ,
चित रम गयौ चरण मुरारी के ।।
मेरे पाप मिटे सब ताप मिटे,
जब जाप जपे भयहारी के ।
'गोपाल' की छोटी सी विनती यही,
अब दर्शन हों संग भानु दुलारी के ।।
©Jay gopal Sharma
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