अनाथ कौ नाम सनाथ भयौ, जब दर्शन पाये बिहारी के । वा रूप की छ्वी कु निरखत ही , चित रम गयौ चरण मुरारी के ।। मेरे पाप मिटे सब ताप मिटे, जब जाप जपे भयहारी के । 'ग.
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