मंज़िल है नज़र मे और शिकस्त-पाई है,
अच्छी किस्मत है अपनी अच्छी ख़ुदाई है...
हमने ये कब कहा के हम हैं मसीहा-नफ्स,
आदमी हैं हम और सद हममें बुराई है...
तन्हा जीतें हैं तन्हा मर जातें हैं लोग,
कैसी वहशत है कैसी तन्हाई है...
वो के जो साथ अपने अक्सर सफर मे रहा,
लाज़िम है के वो अपनी ही परछाई है...
हम भी 'आज़म' बज़्म-ए-यार से ऊठ चले,
अब न अपनी वहां तक रसाई है...
©Saif Azam
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