खुद की तलाश में खुद,ही भटक रही हूँ ।
मिल जाये अगर किसी को मुझ सी तो बताये कोई,पहचानना है आसन बड़ा ,रूप रंग है मुझ सा ही।
है वो नादान सी ,ज़िद्दी सी ,खिलखिलाती सी,करती है जो मनमानियां ही।
जो प्यार करे खुद से, वो मासूम सी दिखती है, तलाशा है खुद को जग में ,जहा में, देखा जो आईने तो हुई हैरान हुई हे मैं ।
ये क्या देखा लिया है मैंने रूप रंग है मुझ सा ही, पर वो तो समझदार सी, पत्थर सी,उदास सी,जो समझे दुनियादारी भी , है वो मुझ सी पर वो मैं नहीं ।
तलाश अब भी जारी है पर मै वो खुद नहीं, भटक रही हूँ खुद की तलाश मैं खुद ही भटक रही हूँ
©Naina Nagpal
#मन_की_बात
#आन_कही_बाते
#मैं_की_तलाश_में