दिन आया सुकून भरा महीनों के इंतजार पर
दरवाजे पर ही हूं खड़ी मैं सोलह श्रृंगार कर
सूटकेस दे हाथों में साथियों को पहले भेजा है
क्यों बक्से में कर बंद खुद को यूं आपने सहेजा है
जान वार कर वतन पर बेजान देह हैं सौंप चले
थे रौशनी के इंतजार में हम आप तो रौशन कर संसार चले
संभालूं कैसे आसुओं को आप मौन हैं बेसुध हैं
पसरा सन्नाटा शहर में जो रक्त आपका अवरुद्ध है
वादा है आपसे बच्ची भी आपका नाम बढ़ाएगी
नाम से आपके वो अपनी पहचान बताएगी
लेटे आप हैं भावनाएं देश की जाग रही
देखती राह मैं बैठी रही
ढल चुका है दिन अब रात सारी ढल रही।।४।।
#shahadat_bhari_deewali 4