दिन आया सुकून भरा महीनों के इंतजार पर
दरवाजे पर ही हूं खड़ी मैं सोलह श्रृंगार कर
सूटकेस दे हाथों में साथियों को पहले भेजा है
क्यों बक्से में कर बंद खुद को यूं आपने सहेजा है
जान वार कर वतन पर बेजान देह हैं सौंप चले
थे रौशनी के इंतजार में हम आप तो रौशन कर संसार चले
संभालूं कैसे आसुओं को आप मौन हैं बेसुध हैं
पसरा सन्नाटा शहर में जो रक्त आपका अवरुद्ध है
वादा है आपसे बच्ची भी आपका नाम बढ़ाएगी
नाम से आपके वो अपनी पहचान बताएगी
लेटे आप हैं भावनाएं देश की जाग रही
देखती राह मैं बैठी रही
ढल चुका है दिन अब रात सारी ढल रही।।४।।
बाबूजी दुकान से नया कुर्ता भी सिला लाए
दो सौ धरा दुकानदार को मिठाई सभी खा लेना
रौशन घर को करने चराग हमारा आ रहा कह आए
झिलमिलाती लड़ियां भी लगा रहे
घर सजाने की हर तरकीब वो अपना रहे
चासनी में डूबी रस मलाई भी कह रही
देखती राह मैं बैठी रही
ढल चुका है दिन अब रात सारी ढल रही।।३।।
बेटी के सब्र का बांध भी अब टूट रहा
खिलौनों से उसका साथ भी है छूट रहा
आप आ रहे हैं उसको याद यही आती है
पापा-पापा कहकर वो नींद में भी बड़बड़ाती है
व्याकुल सी नजरें सिर्फ आसरे में हैं
दीवाली बीतने से पहले जरूर आएंगे कह रही सहेलियों से
नए नए खिलौने पटाखे पापा मेरे लाएंगे
जलाऊंगी मैं पटाखे उनके साथ
मिलकर तब हम असली दीवाली मनाएंगे
खुशियों की सवारी लेकर घड़ियां हैं आ रही
देखती राह मैं बैठी रही
ढल चुका है दिन अब रात सारी ढल रही।।२।।
शहादत भरी दीवाली
देखती राह मैं बैठी रही
ढल चुका है दिन अब रात सारी ढल रही
ना आए आप करके वादा मैं दीप लेकर आऊंगा
जगमगाएंगे चौबारे हमारे मैं दीप लेकर आऊंगा
कहा था मां से मिठाई मेरी पसंदीदा बनाना
छुटकी जो छुपकर पहले मुझसे खाए
डांट जोर की तुम उसको लगाना
दीपावली के दिए सब के साथ ही जलाऊंगा
ना आए आप करके वादा मैं दीप लेकर आऊंगा।
छिपाकर आंसू सबसे हंसती मैं फिर रही
देखती राह जो बैठी रही
ढल चुका है दिन अब रात सारी ढल रही।।१।।
Continue with Social Accounts
Facebook Googleor already have account Login Here