बाबूजी दुकान से नया कुर्ता भी सिला लाए
दो सौ धरा द
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बाबूजी दुकान से नया कुर्ता भी सिला लाए दो सौ धरा दुकानदार को मिठाई सभी खा लेना रौशन घर को करने चराग हमारा आ रहा कह आए झिलमिलाती लड़ियां भी लगा रहे घर सजाने की हर तरकीब वो अपना रहे चासनी में डूबी रस मलाई भी कह रही देखती राह मैं बैठी रही ढल चुका है दिन अब रात सारी ढल रही।।३।।

#shahadat_bhari_deewali #poem  बाबूजी दुकान से नया कुर्ता भी सिला लाए
दो सौ धरा दुकानदार को मिठाई सभी खा लेना
रौशन घर को करने चराग हमारा आ रहा कह आए
झिलमिलाती लड़ियां भी लगा रहे
घर सजाने की हर तरकीब वो अपना रहे

चासनी में डूबी रस मलाई भी कह रही
देखती राह मैं बैठी रही
ढल चुका है दिन अब रात सारी ढल रही।।३।।
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