- कुण्डलिया छंद -
जीना मुश्किल हो रहा, बरस रही है आग।
घर के बाहर काटते, लू के काले नाग।।
लू के काले नाग, रात में भी फुफकारें।
गुस्साए आदित्य, सभी को मारे डारें।।
तर है सारी देह, निरंतर बहे पसीना।
पारा सेंतालीस, बड़ा मुश्किल है जीना।।
- हरिओम श्रीवास्तव -
©Hariom Shrivastava
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