किस के हिस्से की मोहब्बत किस पे ख़र्च हो गई ? ना !

"किस के हिस्से की मोहब्बत किस पे ख़र्च हो गई ? ना ! किस के हिस्से की हवस किस पे ख़र्च हो गई ..... किस के सीने पे किस के हाथ है , किस के होंटो पे किस की बात है । किस के बाहों में कौन है ....... किस के लबों पे किस के लब है ? वजूद ए जज़्बात कुछ भी नहीं शायद हवस ही सब है । वो रात जिसकी तड़प है , वो रात जिसकी तलब है । वो गुज़र भी गई , अब भी उस रात का अंधेरा दूर तलक है । कभी सोँच में कमीनापन , कभी निगाहों में बरहनापन । सारी हदें पार होगई और फ़िर जाना शरीफ़ का आवारापन । कोई बदन उदास हो जैसे , पीने के बाद भी बची कोई प्यास हो जैसे । ज़हीन हो के भी कोई शख़्स बदहवास हो जैसे । MD Arbaz ADEEB"

 किस के हिस्से की मोहब्बत किस पे ख़र्च हो गई ?
ना ! किस के हिस्से की हवस किस पे ख़र्च हो गई .....

किस के सीने पे किस के हाथ है ,
किस के होंटो पे किस की बात है ।

किस के बाहों में कौन है  ....... 
किस के लबों पे किस के लब है ?
वजूद ए जज़्बात कुछ भी नहीं
शायद हवस ही सब है ।

वो रात जिसकी तड़प है ,
वो रात जिसकी तलब है ।
वो गुज़र भी गई , अब भी उस
रात का अंधेरा दूर तलक है ।

कभी सोँच में कमीनापन ,
कभी निगाहों में बरहनापन ।
सारी हदें पार होगई और 
फ़िर जाना शरीफ़ का आवारापन ।

कोई बदन उदास हो जैसे ,
पीने के बाद भी बची कोई
प्यास हो जैसे ।
ज़हीन हो के भी कोई शख़्स
बदहवास हो जैसे ।

MD Arbaz ADEEB

किस के हिस्से की मोहब्बत किस पे ख़र्च हो गई ? ना ! किस के हिस्से की हवस किस पे ख़र्च हो गई ..... किस के सीने पे किस के हाथ है , किस के होंटो पे किस की बात है । किस के बाहों में कौन है ....... किस के लबों पे किस के लब है ? वजूद ए जज़्बात कुछ भी नहीं शायद हवस ही सब है । वो रात जिसकी तड़प है , वो रात जिसकी तलब है । वो गुज़र भी गई , अब भी उस रात का अंधेरा दूर तलक है । कभी सोँच में कमीनापन , कभी निगाहों में बरहनापन । सारी हदें पार होगई और फ़िर जाना शरीफ़ का आवारापन । कोई बदन उदास हो जैसे , पीने के बाद भी बची कोई प्यास हो जैसे । ज़हीन हो के भी कोई शख़्स बदहवास हो जैसे । MD Arbaz ADEEB

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