किस के हिस्से की मोहब्बत किस पे ख़र्च हो गई ?
ना ! किस के हिस्से की हवस किस पे ख़र्च हो गई .....
किस के सीने पे किस के हाथ है ,
किस के होंटो पे किस की बात है ।
किस के बाहों में कौन है .......
किस के लबों पे किस के लब है ?
वजूद ए जज़्बात कुछ भी नहीं
शायद हवस ही सब है ।
वो रात जिसकी तड़प है ,
वो रात जिसकी तलब है ।
वो गुज़र भी गई , अब भी उस
रात का अंधेरा दूर तलक है ।
कभी सोँच में कमीनापन ,
कभी निगाहों में बरहनापन ।
सारी हदें पार होगई और
फ़िर जाना शरीफ़ का आवारापन ।
कोई बदन उदास हो जैसे ,
पीने के बाद भी बची कोई
प्यास हो जैसे ।
ज़हीन हो के भी कोई शख़्स
बदहवास हो जैसे ।
MD Arbaz ADEEB
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