रोज़ रोज़ मिटते है, फिर भी ख़ाक न हुए घमण्ड और अहंकार

"रोज़ रोज़ मिटते है, फिर भी ख़ाक न हुए घमण्ड और अहंकार का अन्त शीघ्र ! साध्वी रिथम्भरा ने मीडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक बाबरी मस्जिद विध्वंस के मुकद्दमे में 29.06.2020 को न्यायालय में दाखिल होने से पहले यह बयान देना कि,"मस्जिद का गिराया जाना सदियों की मानसिक गुलामी से आजादी जैसा", साध्वी का यह भी कहना कि," मैं इस मामले में कुसूर-वार नहीं", न्याय व्यवस्था का मज़ाक उड़ाते जाना है। देश अच्छी तरह जानता है कि ऐसा किस बूते पर कहा जाता है ? किस को खुश करने को कहा जाता है? ऐसे कई साधु और साध्वियों को पालतू पशुओं की तरह प्रयोग आर एस एस और भाजपा के अतिरिक्त कौन कर सकता है। ऐसे कामों के लिए रासुका और यूएपीए नहीं लगायेंगे? चाहे वो दिल्ली दंगों के नायक हों या कोई दूसरे-तीसरे? देश पूछता है जो भी देश के मूल निवासियों और अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों पर सहस्त्रों शताब्दियों तक सामाजिक गुलामी के अत्याचार करते रहे क्या उन का विध्वंश बाबरी मस्जिद विध्वंस की तरह नहीं होना चाहिए ? इस में भी कोई कुसूर वार न ठहराया जाएगा? न्याय तो तभी होगा ।"

 रोज़ रोज़ मिटते है, फिर भी ख़ाक न हुए घमण्ड और अहंकार का अन्त शीघ्र !
साध्वी रिथम्भरा ने मीडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक बाबरी मस्जिद विध्वंस के मुकद्दमे में 29.06.2020 को न्यायालय में दाखिल होने से पहले यह बयान देना कि,"मस्जिद का गिराया जाना सदियों की मानसिक गुलामी से आजादी जैसा", साध्वी का यह भी कहना कि," मैं इस मामले में कुसूर-वार नहीं", न्याय व्यवस्था का मज़ाक उड़ाते जाना है। देश अच्छी तरह जानता है कि ऐसा किस बूते पर कहा जाता है ? किस को खुश करने को कहा जाता है? ऐसे कई साधु और साध्वियों को पालतू पशुओं की तरह प्रयोग आर एस एस और भाजपा के अतिरिक्त कौन कर सकता है। ऐसे कामों के लिए रासुका और यूएपीए नहीं लगायेंगे? चाहे वो दिल्ली दंगों के नायक हों या कोई दूसरे-तीसरे? देश पूछता है जो भी देश के मूल निवासियों और अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों पर सहस्त्रों शताब्दियों तक सामाजिक गुलामी के अत्याचार करते रहे क्या उन का विध्वंश बाबरी मस्जिद विध्वंस की तरह नहीं होना चाहिए ? इस में भी कोई कुसूर वार न ठहराया जाएगा? न्याय तो तभी होगा ।

रोज़ रोज़ मिटते है, फिर भी ख़ाक न हुए घमण्ड और अहंकार का अन्त शीघ्र ! साध्वी रिथम्भरा ने मीडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक बाबरी मस्जिद विध्वंस के मुकद्दमे में 29.06.2020 को न्यायालय में दाखिल होने से पहले यह बयान देना कि,"मस्जिद का गिराया जाना सदियों की मानसिक गुलामी से आजादी जैसा", साध्वी का यह भी कहना कि," मैं इस मामले में कुसूर-वार नहीं", न्याय व्यवस्था का मज़ाक उड़ाते जाना है। देश अच्छी तरह जानता है कि ऐसा किस बूते पर कहा जाता है ? किस को खुश करने को कहा जाता है? ऐसे कई साधु और साध्वियों को पालतू पशुओं की तरह प्रयोग आर एस एस और भाजपा के अतिरिक्त कौन कर सकता है। ऐसे कामों के लिए रासुका और यूएपीए नहीं लगायेंगे? चाहे वो दिल्ली दंगों के नायक हों या कोई दूसरे-तीसरे? देश पूछता है जो भी देश के मूल निवासियों और अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों पर सहस्त्रों शताब्दियों तक सामाजिक गुलामी के अत्याचार करते रहे क्या उन का विध्वंश बाबरी मस्जिद विध्वंस की तरह नहीं होना चाहिए ? इस में भी कोई कुसूर वार न ठहराया जाएगा? न्याय तो तभी होगा ।

#Roz_Roz_Mitte_Hai

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