धर्म, कर्म, अहंकार, न्याय, अन्याय, झूठ, भ्रष्टाचार,भय, स्वतंत्रता विचारों और शरीर की एवं वर्तमान की चिंताएं सभी का सन्तुलन टूट कर खिन्न खिन्न हो चुका है, जैसे यहां आप इस चित्र में देख रहे हैं!
इन सभी परिस्थितियों ने इंसानों के मन, मानसिकता और शरीर को "स्वार्थ के बने कच्चे धागों के जाल की तरह" जकड़ लिया है जिसे काटने या तोड़ने की प्राथमिकता के आधार पर आवश्यकता थी, मगर कौन करेगा यह ?
कहां कोई विचार करता है, सभी ओर समाज में और इस धरती पर अंधेरा छाता जा रहा है जिस में एक बहुत शीघ्र सभी डूबने वाले हैं!!
इसी लिए मेरा मन अशांत है और दुःख से भरा है!!!
कौन आएंगे सामने इस शांति के लिए जिसे हर कोई मृग मरीचिका की तरह ढूंढने के लिए दौड़ रहा है।
©Mohammed Shamoon
Continue with Social Accounts
Facebook Googleor already have account Login Here