"वतन की सौंधी मिट्टी की महक ,खींचती है अपनी ओर,
छोड़ जाता हूँ आँचल माँ का ,तोड़ देता हूँ प्रेम की डोर,
माँ भारती की आन की ख़ातिर ,जननी को छोड़ आया हूँ,
रोती हुई अर्धांगिनी की ,लाल चूड़ियां भी तोड़ आया हूँ ,
सजल आँखों से तक़तें थे , तात भी कर विदा मुझको,
हाथ मे राखी लेकर रोकती थी ,तड़पती बहन भी मुझको,
लुटा कर जान भी रक्षा वतन की, मुझको करनी है ,
दुश्मन की छाती चीरकर , लाज़ भारत की रखनी है ,
कटा कर शीश भी अपना , तिरँगा झुकने ना दूँगा ,
वतन की सोंधी मिट्टी की , महक कम होने ना दूँगा ।।
-पूनम आत्रेय
©poonam atrey
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