हां मालूम है, मैं तेरे समाज की एक नारी हूं, तेरे स

"हां मालूम है, मैं तेरे समाज की एक नारी हूं, तेरे समाज की नजरों में मैं, अबला हूं बेचारी हूं ।। कहीं हार जीत ली जाती हूं, इस जुए के व्यापार में, बता तो जरा! मेरा कितना मोल है, तेरे इज्ज़त के बाजार में।। कहीं बेटी, मां, बहन होकर, रिश्तों के दीप जलाती हूं , तो कहीं अंधेरी रातों के, कोने में लूट ली जाती हूं।। रिश्तों की चेन बनाने वाली, हर रूप में मैं एक नारी हूं , संसार तो आगे बढ़ा... दिया, पर मैं इज्जत की मारी हूं। ©Rachna"

 हां मालूम है, मैं तेरे समाज की एक नारी हूं,
तेरे समाज की नजरों में मैं, अबला हूं बेचारी हूं ।।

कहीं हार जीत ली जाती हूं, इस जुए के व्यापार में,
बता तो जरा! मेरा कितना मोल है, तेरे इज्ज़त के बाजार में।।

कहीं बेटी, मां, बहन होकर, रिश्तों के दीप जलाती हूं ,
तो कहीं अंधेरी रातों के, कोने में लूट ली जाती हूं।।

रिश्तों की चेन बनाने वाली, हर रूप में मैं एक नारी हूं ,
संसार तो आगे बढ़ा... दिया, पर मैं इज्जत की मारी हूं।

©Rachna

हां मालूम है, मैं तेरे समाज की एक नारी हूं, तेरे समाज की नजरों में मैं, अबला हूं बेचारी हूं ।। कहीं हार जीत ली जाती हूं, इस जुए के व्यापार में, बता तो जरा! मेरा कितना मोल है, तेरे इज्ज़त के बाजार में।। कहीं बेटी, मां, बहन होकर, रिश्तों के दीप जलाती हूं , तो कहीं अंधेरी रातों के, कोने में लूट ली जाती हूं।। रिश्तों की चेन बनाने वाली, हर रूप में मैं एक नारी हूं , संसार तो आगे बढ़ा... दिया, पर मैं इज्जत की मारी हूं। ©Rachna

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