वो तेरा शर्माना" उल्फत,शरारत,नजाकत यह सभी तो तुम

""वो तेरा शर्माना" उल्फत,शरारत,नजाकत यह सभी तो तुम्हारे गहनें हैं, तुम मुस्कुराती हो ऐसे जैसे धरती पर बिखरी सूरज की किरणें हैं, अदाएं हम क्या बताएं जो भी देखे तुम्हारी अदाओं को तुम्हारा होकर रह जाए, जब तुम जुल्फ़ें झटकती हो मानों बादलों में मेघ भर आए, आँखों से नशा छलकता है इनके सामने मधुशाला भी कम पड़ जाए, शब्दो में मैं अब तुम्हें ना भर पाऊँगा, तुम्हारे अदाओं में फँसता चला जाऊँगा, बस एक बात है जो मुझे भूलती नहीं है, तुम्हारी वो तस्वीर मेरे सामने घुमती रहती है, जब आती थी तुम मुझसे मिलने, बस मैं बोलता था, और तुम चुनरी के कोने में ऊँगली उलझा कर होठों को दाँतो से दबाती थी, और हल्के सा मुस्कुरा कर बहुत शर्माती थी, कुछ कहना चाहती थी, लेकिन कह नहीं पाती थी, काश समय फिर पिछे चला जाता, और मैं तुम्हें फिर उसी उल्फत,शरारत,नजाकत में देख पाता।। BhaskarSingh"

 "वो तेरा शर्माना"

उल्फत,शरारत,नजाकत यह सभी तो तुम्हारे गहनें हैं,
तुम मुस्कुराती हो ऐसे जैसे
धरती पर बिखरी सूरज की किरणें हैं,
अदाएं हम क्या बताएं
जो भी देखे तुम्हारी अदाओं को
तुम्हारा होकर रह जाए,
जब तुम जुल्फ़ें झटकती हो
मानों बादलों में मेघ भर आए,
आँखों से नशा छलकता है
इनके सामने मधुशाला भी कम पड़ जाए,
शब्दो में मैं अब तुम्हें ना भर पाऊँगा,
तुम्हारे अदाओं में फँसता चला जाऊँगा,
बस एक बात है जो मुझे भूलती नहीं है,
तुम्हारी वो तस्वीर मेरे सामने घुमती रहती है,
जब आती थी तुम मुझसे मिलने,
बस मैं बोलता था,
और तुम चुनरी के कोने में ऊँगली उलझा कर
होठों को दाँतो से दबाती थी,
और हल्के सा मुस्कुरा कर बहुत शर्माती थी,
कुछ कहना चाहती थी,
लेकिन कह नहीं पाती थी,
काश समय फिर पिछे चला जाता,
और मैं तुम्हें फिर उसी 
उल्फत,शरारत,नजाकत में देख पाता।।

BhaskarSingh

"वो तेरा शर्माना" उल्फत,शरारत,नजाकत यह सभी तो तुम्हारे गहनें हैं, तुम मुस्कुराती हो ऐसे जैसे धरती पर बिखरी सूरज की किरणें हैं, अदाएं हम क्या बताएं जो भी देखे तुम्हारी अदाओं को तुम्हारा होकर रह जाए, जब तुम जुल्फ़ें झटकती हो मानों बादलों में मेघ भर आए, आँखों से नशा छलकता है इनके सामने मधुशाला भी कम पड़ जाए, शब्दो में मैं अब तुम्हें ना भर पाऊँगा, तुम्हारे अदाओं में फँसता चला जाऊँगा, बस एक बात है जो मुझे भूलती नहीं है, तुम्हारी वो तस्वीर मेरे सामने घुमती रहती है, जब आती थी तुम मुझसे मिलने, बस मैं बोलता था, और तुम चुनरी के कोने में ऊँगली उलझा कर होठों को दाँतो से दबाती थी, और हल्के सा मुस्कुरा कर बहुत शर्माती थी, कुछ कहना चाहती थी, लेकिन कह नहीं पाती थी, काश समय फिर पिछे चला जाता, और मैं तुम्हें फिर उसी उल्फत,शरारत,नजाकत में देख पाता।। BhaskarSingh

#Hope #शर्माना #इश्क

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