White सुकूँ मिलता नहीं जब भी तो माँ की याद आती है
कि जैसे बारिशों की रुत में छतरी याद आती है
कहीं इस शहर की आब-ओ-हवा में दम न घुट जाए
कि मुझको गाँव की सौंधी सी मिट्टी याद आती है
तरक़्क़ी के शिखर पर जब पहुँचते हैं तो अक्सर ही
वो ना-समझी में ज़ाया की जवानी याद आती है
भला वो बाप हाथों के किसे छाले दिखाए अब
जिसे घर बैठी इक बेटी सियानी याद आती है
©Arshe Alam
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