एक शाम थी ढली, रोशन थी गली... गली चाहे इश्क की हो | हिंदी शायरी

"एक शाम थी ढली, रोशन थी गली... गली चाहे इश्क की हो या बनारस की गुरु अगर फंस गए तो निकलना मुस्किल होगा सोचलो ©Error"

 एक शाम थी ढली,  रोशन थी गली... गली चाहे इश्क की हो या बनारस की 
गुरु अगर फंस गए तो निकलना मुस्किल होगा सोचलो

©Error

एक शाम थी ढली, रोशन थी गली... गली चाहे इश्क की हो या बनारस की गुरु अगर फंस गए तो निकलना मुस्किल होगा सोचलो ©Error

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