करते हैं हम बात गगन से , सूरज , चाँद , सितारों स

"करते हैं हम बात गगन से , सूरज , चाँद , सितारों से , आगे बढ़ना चाह रहे हम दुनियाँ के बाजारों से , लोकतंत्र के दुश्मन घर में बैठ कब्र हैं खोद रहे , आज देश लगता है जैसे भरा हुआ गद्दारों से ! अशान्त (पटना)"

 करते हैं हम बात गगन से ,
सूरज , चाँद , सितारों   से ,
आगे  बढ़ना  चाह रहे हम 
दुनियाँ   के   बाजारों   से ,
लोकतंत्र के  दुश्मन घर में 
बैठ   कब्र   हैं   खोद   रहे ,
आज देश  लगता है  जैसे 
भरा   हुआ    गद्दारों   से !

अशान्त (पटना)

करते हैं हम बात गगन से , सूरज , चाँद , सितारों से , आगे बढ़ना चाह रहे हम दुनियाँ के बाजारों से , लोकतंत्र के दुश्मन घर में बैठ कब्र हैं खोद रहे , आज देश लगता है जैसे भरा हुआ गद्दारों से ! अशान्त (पटना)

कविता

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