नन्नी परी..
थी एक नन्नी सी परी जो मुस्कुराया करती थी,
थी इतनी नटखट पकड़ो तो तितली की तरह उड़ जाया करती थी,
थी इतनी प्यारी सबका मन पहली नज़र मै मोह लिया करती थी,
थी बो अनजान इसबात से जहाँ चाहा बहा घुमा करती थी,
एक दिन हुआ कुछ ऐसा, ना सोचा होगा उसने ऐसा,
उस दिन बादल थे घनघोर,कर रहे थे इत्तला मचा रहे थे सोर,
कुछ ज़ालिमों ने मिलकर उस पर तोड़ा ऐसा कहर,
ना रही बो तितली ना रहा उसका सोर ,
थी एक नन्नी सी परी जो मचाती थी सोर हर रोज..
क्या थी उस नन्नी सी परी की बजह जो उसे मिली थी इतनी बड़ी सजा,
थी एक नन्नी सी तितली जो उड़ती फिरती थी हर रोज..
अब भी सुनसान रातो मै करती है बो सोर,
चीखती चिल्लाती है जोर जोर,
करती है बो सबसे एक सवाल रोज,
क्या थी उसकी गलती क्या था उसका दोस..
सोनू sinha_