रिश्ते की कोई जात नहीं होती, धर्म नहीं होता ,जज्बा | हिंदी Shayari
"रिश्ते की कोई जात नहीं होती, धर्म नहीं होता ,जज्बातो का वर्णन यू खुलेआम नहीं होता
ये फितूर का कसूर है, या रिवाजो का सुरूर ,
इश्क़ की जंग का कभी ऐलान नहीं होता"
रिश्ते की कोई जात नहीं होती, धर्म नहीं होता ,जज्बातो का वर्णन यू खुलेआम नहीं होता
ये फितूर का कसूर है, या रिवाजो का सुरूर ,
इश्क़ की जंग का कभी ऐलान नहीं होता