रिश्ते की कोई जात नहीं होती, धर्म नहीं होता ,जज्बातो का वर्णन यू खुलेआम नहीं होता ये फितूर का कसूर है, या रिवाजो का सुरूर , इश्क़ की जंग का कभी ऐलान नहीं होता.
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