बंधनवार थें मैं बनी बंदिनी , थाँ ही मोर भये रखवार ।
आप छवि नयन बसी ऐसो , दूजा रूप न और लखाय ।।
पूनम रात धरा पांव पखारत् , विधिवत् चन्द्र शिरोमणि नभ छाएं ।
हरस चहक उठी चकोरी , रमण रमणीय दरस पाएं ।।
यां मिलन पियूष सरीखा , वर्णित कुछू न कह जाएं।
इहं सो देखूं सूरत लावणी , षड्विशा सुपण सुनाएं ।।
रूप रसीला नयन चटकीला , रसीला मन्द मन्द मुस्काय ।
इक टक लाखूं छबि अनुपम , मन बीच कोटिक देव मनाय ।।
निरखत् रूप जां चन्द्र लजाय , वां सुवर्ण श्याम मिलन मोय आएं ।
नैना नीर बहत मम जस जस , तरत दरस सों जनम सुफलाय ।।
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