सामने मंज़िल थी और, तलाश-ए-मन्ज़िल-ए-सब्र-ओ-सुकूँ तो | हिंदी कविता

"सामने मंज़िल थी और, तलाश-ए-मन्ज़िल-ए-सब्र-ओ-सुकूँ तो है दिल को, मिला है राह में लेकिन फ़क़त ग़ुबार मुझे."

 सामने मंज़िल थी और, तलाश-ए-मन्ज़िल-ए-सब्र-ओ-सुकूँ तो है दिल को, 
मिला है राह में लेकिन फ़क़त ग़ुबार मुझे.

सामने मंज़िल थी और, तलाश-ए-मन्ज़िल-ए-सब्र-ओ-सुकूँ तो है दिल को, मिला है राह में लेकिन फ़क़त ग़ुबार मुझे.

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