वैचारिक जंग से हर दिन टकराता हूं
अंदर- बाहर, अपना- पराया सब से उलझता हूं
पढ़ा हूं ,जाना हूं ,हकीकत समझता हूं
भीड़ में भी सच कहने की ताकत रखता हूं
हां मैं हर दिन लोंगो से उलझता हूं
वर्षो की विरासत पर प्रश्न चिंह लगता हूं
धार्मिकता की मानसिक गुलामी , आडंबरवाद ,ब्राह्मणवाद , पतृसत्तावाद और वंशवाद को धिक्कारता हूं
हां मैं मानने से पहले जानना चाहता हूं
जोकि बनी बनाई व्यवस्था सच बताने से कतराता है
वह नही चाहता कि उसका एकाधिकार छीना जाए
जो हुआ सो हुआ आगे के लिए सकारात्मक बदलाव किया जाए
लोगों को भेड़ चाल आसान जान पड़ता हैं
हकीकत की राह उसे मुश्किल नजर आता हैं
मैं मुश्किल में पड़ वैचारिक बदलाव चाहता हूं
लोग हकीकत को समझे मैं वो व्यवहार देखना चाहता हूं ।
©Arun kr.