जानो तो मानो है वास्तविकता क्या
अपना अतीत अच्छा उदाहरण होगा
कंहा था ईश्वर जब बहुसंख्यक समाज
जानवर से बदत्तर जीवन जीने को मोहताज था
जिनके छाया भर से देवी -देवता और ब्राह्मण अपवित्र हो जाता था
शुद्र और वैश्य ब्राह्मणों के कोरे खाता था
क्या देवी देवता और ईश्वर को ये सब नजर नही आता था
नाइ का काम काम
ब्राह्मण का काम धर्म कैसे
जो जबरन थोपे हो अज्ञानता पर
लोगो मे भय और अंधविश्वास का जयकारा लगाकर
है अगर ईश्वर तो साक्ष्य क्या ?
जिस मानव शरीर को हीन और अपवित्र बताते
उसी लिंग की अराधना में लीन रहना बताते
जो हमें सवाल करने से रोकता हो,हमारे विवेक को मारता हो,अंधभक्ति के नाम पर हमारे हित छीन लेता हो,ईश्वर के नाम पर हमारा शोषण करता हो ,जात पात और धर्म के नाम पर हमे आपस मे बाटता हो
क्या कोई ईश्वर इतना भेदभाव सह सकता है
अगर नही तो है कंहा ईश्वर ?
ऐसे तमाम सवाल करने वाले सामाजिक न्याय के प्रेणता, बुद्धिजीवी,समानता के जननायक ,नास्तिकों के जनक ई.वी.पेरियार जयंती पर कोटि कोटि प्रणाम 🙏
©Arun kr.
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