नौकरी की चाह में, हमने, घर बार सब त्यागा हैं। माँ | हिंदी Poetry

"नौकरी की चाह में, हमने, घर बार सब त्यागा हैं। माँ कहती है घर जाने पर, क्या तू रात भर जागा हैं। साँप सीढ़ी चयन प्रक्रिया की, कैसे माँ को समझाऊ। किस सांप ने कांटा कहाँ गिरा मैं, कैसे उनकों बतलाऊ मैं।। माँ मुझे समझने की कोशिश करती, समाज उन्हें भड़काता हैं।क्या पढ़ता है, बच्चा तेरा जो, हर बार फेल हो जाता है। सम्मान उसी का होता है, जो जल्दी कुछ बन जाता हैं। नही तो प्यारे इसी समाज मे, चपरासी को अफसर से तोला जाता हैं। महत्वपूर्ण है नोकरी पाना, कुछ भी बनके दिखलाओ घर के ताने बाद में मिलेंगे ©पूर्वार्थ"

 नौकरी की चाह में, हमने,
घर बार सब त्यागा हैं।
माँ कहती है घर जाने पर,
क्या तू रात भर जागा हैं।
साँप सीढ़ी चयन प्रक्रिया की,
कैसे माँ को समझाऊ।
किस सांप ने कांटा कहाँ गिरा मैं,
कैसे उनकों बतलाऊ मैं।।
माँ मुझे समझने की कोशिश करती,
समाज उन्हें भड़काता हैं।क्या पढ़ता है,
बच्चा तेरा जो,
हर बार फेल हो जाता है।
सम्मान उसी का होता है,
जो जल्दी कुछ बन जाता हैं।
नही तो प्यारे इसी समाज मे,
चपरासी को अफसर से तोला जाता हैं।
महत्वपूर्ण है नोकरी पाना,
कुछ भी बनके दिखलाओ
घर के ताने बाद में मिलेंगे

©पूर्वार्थ

नौकरी की चाह में, हमने, घर बार सब त्यागा हैं। माँ कहती है घर जाने पर, क्या तू रात भर जागा हैं। साँप सीढ़ी चयन प्रक्रिया की, कैसे माँ को समझाऊ। किस सांप ने कांटा कहाँ गिरा मैं, कैसे उनकों बतलाऊ मैं।। माँ मुझे समझने की कोशिश करती, समाज उन्हें भड़काता हैं।क्या पढ़ता है, बच्चा तेरा जो, हर बार फेल हो जाता है। सम्मान उसी का होता है, जो जल्दी कुछ बन जाता हैं। नही तो प्यारे इसी समाज मे, चपरासी को अफसर से तोला जाता हैं। महत्वपूर्ण है नोकरी पाना, कुछ भी बनके दिखलाओ घर के ताने बाद में मिलेंगे ©पूर्वार्थ

#नौकरी

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