लगा कर माथे पे आ गई वो एक प्यारी सी बिंदी चांद से | हिंदी कविता

"लगा कर माथे पे आ गई वो एक प्यारी सी बिंदी चांद से चेहरे पर नूर बनकर छा गई वो प्यारी सी बिंदी और हम तो पहले ही हारे बैठे थे दिल तेरी सादगी पे आज मेरे दिल में समा गई तेरी वो प्यारी सी बिंदी!! लगाकर बिंदी तूने आज कोई जादू चला दिया एक पागल को तूने देख दीवाना बना दिया तेरी बिंदी ने देख कैसा ये मुझपे सितम किया चुराकर नींद आंखों से मुझे सारी रात जगा दिया!! यूं तो पहले भी निहारती थी तुझे मेरी आंखे पर आज तेरे चेहरे से हटी ही नही ये मेरी आंखे ना उम्मीद कोई और ना ही कोई ख्वाहिश थी मेरे दिल में फिर भी बस तुझको ही एकटक देखती रही मेरी आंखे!! आंखों से उतरकर तू मेरे दिल में समा गई दिन का पता ही नही चला और ये खमबख्त शाम आ गई और वैसे तो रात भर मैं सो ना सका ख्यालों में तेरे पर जरा सी आंख क्या लगी तू मेरे सपने में आ गई!! कवि : इंद्रेश द्विवेदी (पंकज) ©Indresh Dwivedi"

 लगा कर माथे पे आ गई वो एक प्यारी सी बिंदी
चांद से चेहरे पर नूर बनकर छा गई वो प्यारी सी बिंदी
और हम तो पहले ही हारे बैठे थे दिल तेरी सादगी पे
आज मेरे दिल में समा गई तेरी वो प्यारी सी बिंदी!!

लगाकर बिंदी तूने आज कोई जादू चला दिया
एक पागल को तूने देख दीवाना बना दिया
तेरी बिंदी ने देख कैसा ये मुझपे सितम किया
चुराकर नींद आंखों से मुझे सारी रात जगा दिया!!

यूं तो पहले भी  निहारती थी तुझे मेरी आंखे
पर आज तेरे चेहरे से हटी ही नही ये मेरी आंखे
ना उम्मीद कोई और ना ही कोई ख्वाहिश थी मेरे दिल में
फिर भी बस तुझको ही एकटक देखती रही मेरी आंखे!!

आंखों से उतरकर तू मेरे दिल में समा गई
दिन का पता ही नही चला और ये खमबख्त शाम आ गई
और वैसे तो रात भर मैं सो ना सका ख्यालों में तेरे
पर जरा सी आंख क्या लगी तू मेरे सपने में आ गई!! 


कवि : इंद्रेश द्विवेदी (पंकज)

©Indresh Dwivedi

लगा कर माथे पे आ गई वो एक प्यारी सी बिंदी चांद से चेहरे पर नूर बनकर छा गई वो प्यारी सी बिंदी और हम तो पहले ही हारे बैठे थे दिल तेरी सादगी पे आज मेरे दिल में समा गई तेरी वो प्यारी सी बिंदी!! लगाकर बिंदी तूने आज कोई जादू चला दिया एक पागल को तूने देख दीवाना बना दिया तेरी बिंदी ने देख कैसा ये मुझपे सितम किया चुराकर नींद आंखों से मुझे सारी रात जगा दिया!! यूं तो पहले भी निहारती थी तुझे मेरी आंखे पर आज तेरे चेहरे से हटी ही नही ये मेरी आंखे ना उम्मीद कोई और ना ही कोई ख्वाहिश थी मेरे दिल में फिर भी बस तुझको ही एकटक देखती रही मेरी आंखे!! आंखों से उतरकर तू मेरे दिल में समा गई दिन का पता ही नही चला और ये खमबख्त शाम आ गई और वैसे तो रात भर मैं सो ना सका ख्यालों में तेरे पर जरा सी आंख क्या लगी तू मेरे सपने में आ गई!! कवि : इंद्रेश द्विवेदी (पंकज) ©Indresh Dwivedi

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