होली बात गयी कि बाते उसकी अक्सर इस कदर घूम जाती है

"होली बात गयी कि बाते उसकी अक्सर इस कदर घूम जाती है ; सुनना भी मुश्किल है ,सुनाना भी मुश्किल है। आँख मुझे घूर घूर कर यूँ देखा करती है; हंसना भी मुश्किल है, हँसाना भी मुश्किल है। तनख्वाह तो सीमित है,करूँ कैसे ख्वाहिशे पूरी; लुटना भी मुश्किल है , लुटाना भी मुश्किल है। एक पत्नी को कुदरत ने, बनाया इस कदर यारो; समझना भी मुश्किल है,समझाना भी मुश्किल है। ©Hitendra"

 होली बात गयी कि बाते उसकी अक्सर इस कदर घूम जाती है ;
सुनना भी मुश्किल है ,सुनाना भी मुश्किल है।

आँख  मुझे  घूर  घूर  कर  यूँ देखा करती है;
हंसना भी मुश्किल है, हँसाना भी मुश्किल है।

तनख्वाह तो सीमित है,करूँ कैसे ख्वाहिशे पूरी;
लुटना भी मुश्किल है , लुटाना भी मुश्किल है।

एक पत्नी को कुदरत ने, बनाया इस कदर यारो;
समझना भी मुश्किल है,समझाना भी मुश्किल है।

©Hitendra

होली बात गयी कि बाते उसकी अक्सर इस कदर घूम जाती है ; सुनना भी मुश्किल है ,सुनाना भी मुश्किल है। आँख मुझे घूर घूर कर यूँ देखा करती है; हंसना भी मुश्किल है, हँसाना भी मुश्किल है। तनख्वाह तो सीमित है,करूँ कैसे ख्वाहिशे पूरी; लुटना भी मुश्किल है , लुटाना भी मुश्किल है। एक पत्नी को कुदरत ने, बनाया इस कदर यारो; समझना भी मुश्किल है,समझाना भी मुश्किल है। ©Hitendra

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