#HappyChildrensDay ..जा रहा बचपन-एक कविता आयु की | हिंदी कविता

"#HappyChildrensDay ..जा रहा बचपन-एक कविता आयु की राहों में.. जा रहा बचपन, बस्तों की बाहों में.. जा रहा बचपन, रोक दो कोई ये..उम्र की चाल चंचल, खंडों के घावों में.. जा रहा बचपन। आभासी खेल में.. जा रहा बचपन, जीत की धकेल में.. जा रहा बचपन, रोक दो कोई ये..उम्र की चाल चंचल, अंध रेलमपेल में.. जा रहा बचपन। प्रगति के जाल में.. जा रहा बचपन, विभ्रांति की ढाल में.. जा रहा बचपन, रोक दो कोई ये..उम्र की चाल चंचल, बेमेल सुर ताल में.. जा रहा बचपन। उन्नति के जंजाल में.. जा रहा बचपन, एकाकी काल में.. जा रहा बचपन, रोक दो कोई ये..उम्र की चाल चंचल, गहरे पाताल में..जा रहा बचपन। कवि आनंद दाधीच। भारत ©Anand Dadhich"

 #HappyChildrensDay  ..जा रहा बचपन-एक कविता

आयु की राहों में.. जा रहा बचपन,
बस्तों की बाहों में.. जा रहा बचपन,
रोक दो कोई ये..उम्र की चाल चंचल,
खंडों के घावों में.. जा रहा बचपन। 

आभासी खेल में.. जा रहा बचपन,
जीत की धकेल में.. जा रहा बचपन,
रोक दो कोई ये..उम्र की चाल चंचल,
अंध रेलमपेल में.. जा रहा बचपन।

प्रगति के जाल में.. जा रहा बचपन,
विभ्रांति की ढाल में.. जा रहा बचपन,
रोक दो कोई ये..उम्र की चाल चंचल,
बेमेल सुर ताल में.. जा रहा बचपन।

उन्नति के जंजाल में.. जा रहा बचपन,
एकाकी काल में.. जा रहा बचपन,
रोक दो कोई ये..उम्र की चाल चंचल,
गहरे पाताल में..जा रहा बचपन।

कवि आनंद दाधीच। भारत

©Anand Dadhich

#HappyChildrensDay ..जा रहा बचपन-एक कविता आयु की राहों में.. जा रहा बचपन, बस्तों की बाहों में.. जा रहा बचपन, रोक दो कोई ये..उम्र की चाल चंचल, खंडों के घावों में.. जा रहा बचपन। आभासी खेल में.. जा रहा बचपन, जीत की धकेल में.. जा रहा बचपन, रोक दो कोई ये..उम्र की चाल चंचल, अंध रेलमपेल में.. जा रहा बचपन। प्रगति के जाल में.. जा रहा बचपन, विभ्रांति की ढाल में.. जा रहा बचपन, रोक दो कोई ये..उम्र की चाल चंचल, बेमेल सुर ताल में.. जा रहा बचपन। उन्नति के जंजाल में.. जा रहा बचपन, एकाकी काल में.. जा रहा बचपन, रोक दो कोई ये..उम्र की चाल चंचल, गहरे पाताल में..जा रहा बचपन। कवि आनंद दाधीच। भारत ©Anand Dadhich

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