सामने मंज़िल थी और, हमें पता भी न चला.. जिंदगी नि | हिंदी कविता

"सामने मंज़िल थी और, हमें पता भी न चला.. जिंदगी निकल गई पता ही न चला- आंख खुली मगर देर हो चुकी थी- अब पता चला भी तो क्या पता चला! मुकाम गुज़र गया दास्तानें बदल गईं हमें पता ही न चला!"

 सामने मंज़िल थी और,   हमें पता भी न चला..
जिंदगी निकल गई 
पता ही न चला-
आंख खुली मगर
देर हो चुकी थी-
अब पता चला भी
तो क्या पता चला!
मुकाम गुज़र गया
दास्तानें बदल गईं
हमें पता ही न चला!

सामने मंज़िल थी और, हमें पता भी न चला.. जिंदगी निकल गई पता ही न चला- आंख खुली मगर देर हो चुकी थी- अब पता चला भी तो क्या पता चला! मुकाम गुज़र गया दास्तानें बदल गईं हमें पता ही न चला!

सामने मंज़िल थी....

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