ये जो कागजों पर आया हैं, सोचा भी न था जो पाया हैं, और इसी को पाने के लिए मैंने अपना रंग सांवला बनाया है, बालपन से ही परिश्रम किया है मैंने, तब जाकर आज खड़ी हो पाई हूँ, गर्मी की तपिश के बाद आज मेरे जीवन मे इन्द्रधनुषीय रंग चमचमाया है, ये जो काग़जों पर आया हैं सोचा भी न था जो पाया हैं। मुख में चांदी की चम्म्च नहीें थी मेरे, माँ ने बड़ी मुश्किल से निवाला खिलाया है, इस फल पकवान के ढ़ेर को मैंने बड़ी मुश्किल से अब देख डाला है, यह जो कागज़ों पर आया हैं बड़ी मुश्किल से मैंने पाया हैं समान्य जीवन नहीं था मेरा, बड़ी कमियों में दौर गुजारा हैं, काँटों की डगर पर चल कर ही मेरी खुशियों का परचम लहराया हैं, ये जो कागज़ों पर आया हैं बडी मुश्किल से मैंने पाया है ।
©Sarika Vahalia
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