कितने ही तारे टूट गए,
और कितने खुद ने तोड़ दिए थे,
हमनें खुदगर्ज़ी में अपनी,
अपने सपने ही छोड़ दिए थे,
हम लड़े उनसे या उनके लिए,
वो भला किसी की सुनते हैं क्या,
उनकी बातें सुनते-सुनते,
सबसे रुख तक मोड़ दिए थे,
और अब आकर जो कहते हैं वो,
कि रुको जरा तुम रुक जाओ न,
हाथ पकड़ के जब रखा था हमनें,
तब सारे बंधन तोड़ दिए थे...
--aawaz
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