कच्ची थी आस की डोरी,
एक पल में टूट गई है
ये अपनों की खुदगर्जी ......
खुशियाँ मेरी रुठ गयी है,
इस राह -ए- वफ़ा में पायी......
हर मोड़ फक़त रूसवाई,
जो मंजिल की चाहत थी,
रस्ते में वो छूट गयी है..........
सुना मन का आंगन है ये कैसा खालीपन है
मेरे अंदर है तन्हाई,
मेरे बाहर है वीराने...........
©Ankita Singh
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