ये पृथ्वी मृत्यु लोक है।
फिर भी हर दिशा में क्यों,
केवल मृत्यु का ही शोक है ?
दुःख में प्रभु की याद है
ये स्वार्थ का प्रमाण है।
ना सुख से कभी संतुष्ट हैं
भौतिकता से लिप्त लोग हैं।।
ये पृथ्वी मृत्यु लोक है।
स्व कर्म से अनभिज्ञ हैं
अविद्या का परम योग है।
बस देह का ही बोध है
आत्मा से मनुज कमज़ोर है।।
ये पृथ्वी मृत्यु लोक है ।
हो दैव रुष्ठ भी तो क्या?
निज कर्म का सदा संयोग है।
शरीर वस्त्र हैं नश्वर सभी
आत्मा का अमर ब्रह्म लोक है।
ये पृथ्वी मृत्यु लोक है।
फिर भी हर दिशा में क्यों,
केवल मृत्यु का ही शोक है ?
-प्राची
©Prachi Kandpal
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