लिख रहा है वो तक़दीर सब की,
खुशियां कम और गम ज्यादा देकर..
कुछ अपने देकर तो कुछ
अपनो में भी हैवान देकर..
हाथ बढ़ाया विश्वास जीता सबका,
ख़ुद को भूल हर वक्त जिसे सब ने है पुजा..
मिलता हैं वो मंदिर-मस्जिदों में,
कहीं लाल चुनरी ओढ़े तो कहीं हरी चादर लेटे...
वैसे तो है वो जग में हर कहीं विराजमान,फिर
क्यों नोचे जा रहे है नन्हीं राजकुमारियों के भी जननांग...
हंसने,रोने,हर एक पल में जब तू समाया है,
तो क्यूं तेरी आंखों पे ये अंधेरा छाया है..
तूने ही ये इंसान बनाया है, फिर क्यू
किसी की भर दी झोली खुशकिस्मत से
तो किसी की बदकिस्मती से...
©khushboo dabaria
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