रूपारामहसरत नहीं, अरमान नहीं, आस नहीं है,
यादों के सिवा कुछ भी मेरे पास नहीं है।
आ गयी तेरी याद दर्द का लश्कर लेकर,
अब कहाँ जायें हम दिल-ए-मुजतर लेकर।
जाते-जाते आप इतना काम कर देना मेरा,
याद का सारा सर-ओ-सामाँ जलाते जाइए।
फ़िक्र ये थी कि शब-ए-हिज्र कटेगी कैसे,
लुत्फ़ ये है कि हमें याद न आया कोई।
- via bkb.ai/shayari
©Ruparam
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