विरह के क्षण
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तुम्हारे साथ जो क्षण मैंने बिताए हैं।
स्मरण अकेले में बहुत आए हैं ।
वो प्यारी सी मुस्कान ,
वो मीठी सी बात।
वो शर्मिले नयन ,
वो रोज़ की मुलाकात।
हर रोज एक नया ऐहसास ,
तुमसे मिलने से पहले ,
तुमसे मिलने के बाद।
चढ़ता था मेरे तन मन में ,
इश्क की इक बुखार ।
छाया रहता था मुझमें ,
मदिरालय सा खुमार ।
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कैसे कहूं प्रिये !, तुमसे दूर रहकर मैं ,
कितने विरह के अश्रु पी रहा हूं ।
अंत: हृदय में तेरी छवि बसाए ,
पल –छिन नयनों से देख रहा हूं ,
स्वांसो का एक माला बनाए ,
बस नाम तेरा जप रहा हूं ।
मिलने की तुमको उस ईश्वर से ,
नित्य प्रार्थना कर रहा हूं ।
कैसे कहूं बिछड़कर तुमसे ,
किस हाल में मैं जी रहा हूं।
©Umesh Kumar
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