सीना सिपर किये हुए आगे बढ़ेंगें हम
ये किसने कह दिया तेरे आगे झुकेगें हम।
सर कट गये अगर तो दिखेगा ये हौसला
अहबाब की ज़बान से नारा करेंगें हम।
इंसानियत का ख़ून रहेगा हमेशा सुर्ख़
आयीन की किताब को जब भी पढ़ेंगें हम।
माज़ी से हाल तक का सफ़र इसका है गवाह
मर कर हज़ार बार भी ज़िंदा रहेंगें हम।
तारीख़ साज़ बन के उठेंगे जहान से
छाती पे गोली खा के जहां भी गिरेंगे हम।
आग़ाज़ है सफ़र का कि मंज़िल अभी है दूर
तुम क्यों समझ रहे हो कि आगे रुकेगें हम।
तारीख़ की ज़बान से बोलेंगे हश्र तक
कट जाए गर ज़बाँ भी तो कब चुप रहेंगे हम।
बे आबो ग्याह सहरा में पाले गए मियां
भूखे भी रह के दो गुने दम से लड़े गें हम।
ज़ालिम की क्या मजाल कि हम को उखाड़ दे
मज़लूम रह के देखना कैसे जमेंगे हम।
दुश्मन की साँस सीने में दम तोड़ देगी *औन*
हाथों से हाथ थाम के जिस दम चलेंगे हम।
औन प्रतापगढ़ी
سینہ سپر کۓ ہوۓ آگے بڑھینگے ہم
یہ کس نے کہ دیا تیرے آگے جھکینگے ہم۔
سر کٹ گۓ اگر تو دکھے گا یہ حوصلہ
احباب کی زبان سے نعرہ کرینگے ہم۔
انسانیت کا خون رہے گا ہمیشہ سرخ
آئین کی کتاب کو جب بھی پڑھینگے ہم۔
ماضی سے حال تک کا سفر اس کا ہے گواہ
مر کر ہزار بار بھی زندہ رہینگے ہم۔
تاریخ ساز بن کے اٹھینگے جہان سے
چھاتی پہ گولی کھا کے جہاں بھی گرینگے ہم۔
آغاز ہے سفر کا کہ منزل ابھی ہے دور
تم کیوں سمجھ رہے ہو کہ آگے رکینگے ہم؟؟
تاریخ کی زبان سے بولینگے حشر تک
کٹ جاۓ گر زباں بھی تو کب چپ رہینگے ہم۔
بے آپ و گیاہ صحرا میں پالے گۓ میاں
بھوکے بھی رہ کے دو گنے دم سے لڑینگے ہم۔
ظالم کی کیا مجال کہ ہم کو اکھاڑ دے
مظلوم رہ کے دیکھنا کیسے جمینگے ہم۔
دشمن کی سانس سینے میں دم توڑ دیگی عونٓ
ہاتھوں سے ہاتھ تھام کے جس دم چلینگے ہم۔
Continue with Social Accounts
Facebook Googleor already have account Login Here