शीर्षक:― "ख़ुद की तलाश"
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मैं खुद को अंदर पाता हूँ।
डरा हुआ, सहमा सा
एक बच्चे की माफ़िक
ख़ुद की परछाई से भी सहम जाता हूँ।
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वक़्त और हालात से
टकराने की ज़द्दोज़हद में,
मैं हर मर्तबा ख़ुद को
मजबूरियों के बवंडरों से घिरा पाता हूँ।
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दिल रोता हैं,
रूह अंदर तक कांप जाता हैं,
चीख़ता है, चिल्लाता हैं,
ख़ुदा से मरने की भीख मांगता हैं।
पर इस रुदन और अंतर्मन की पुकार
उस ख़ुदा तक न पहुंच पाता हैं।
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इन सारी क्रियाकलापों के अंत होने पर
मेरा अंतर्मन ख़ुद को
मानसिक वेदना से ग्रसित
अकेला और तन्हा पाता हैं।।
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👉VIKKY RATHORE ©️
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