हो गयी है धर्म की जीत,
अब करता हू कुछ दिल की बात..
जब याद आती है मथुरा,
न जाने क्यू लंबी लगती है रात..
सब छोडकर अब गोकुल आना है,
बस एक दिन फिरसे कान्हा बन जाना है...
सारथी बनके पार्थ का,
संसार को गीता का ज्ञान दिया..
छोडकर मोह बासुरी का,
हाथ में सुधरशन चक्र धारन किया..
अब मटकी फोडकर माखन चुराना है,
बस एक दिन फिरसे कान्हा जैसा जीना है...
पिछले जन्म जानकी से रहकर दूर,
राधा का भी न थाम सका हाथ..
कर्तव्य से होकार मजबूर,
और कितने जन्म नहीं मिलेगा अपनो का साथ..
अब वृंदावन जाकर मुरली बजाना है,
बस एक दिन फिरसे कान्हा बन जाना है...
सबके हृदय मे मैं बसता हू,
औंर मैं भी एक दिल रखता हू..
अब उस दिल से रास रचाना है,
एक दिन फिरसे कान्हा जैसा जीना है..
बस एक दिन फिरसे कान्हा बन जाना है ...
©Tejz0560
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