ये जो शोर बढ़ता जा रहा,मेरी घुटन बढ़ा रहा है
मौत का तमाशा जो है ये, मेरी जीने की चाह घटा रहा है
इस कदर तबाह हुआ है मेरा दिन,कि कल फिर जागने का डर सांसें चढ़ा रहा है
सांसें कैद ही लगती है झोंको में कि हवाओं का असर खत्म होता जा रहा है
आशियानें तो खुद उजड़ कर चुका हूं, मैं इन सायों पर कैसा हक जता रहा हूं
मेरे जीत के निशान दिखाई देते हैं तुम्हें और मैं आईनों से अक्स समेट नहीं पा रहा हूं
सफर आधा है या ये शुरुआत है सच कहो मेरे बाद किसी के जीने के कितने आसार हैं
इतनी खुबसूरती से चमकती रही अब तक,जलन नहीं काली राख उड़ी तो आग का एहसास है
हर सुबह उठने वाले बढ़ते जा रहे हैं, तसल्ली भरी आंखों में मुझे रात गुजारने का इंतजार है
वादे तो तुझसे पहले से भी करने वाले हैं मेरे पास पर तेरी तो खामोशी से मुझे सरोकार है
जिंदगी तो है खुद की भी पड़ी अभी बहुत लम्बी है,पर जिंदा हूं कब तक रहूं ये ही सवाल है
Continue with Social Accounts
Facebook Googleor already have account Login Here