दिल की किताब से ✍️
सुंदर सी वो गुड़िया थी, सबकी गोदियो मे खेली थी
कुदरत का नूर थी वो, दिखती लाखो मे अकेली थी
घर की थी लक्ष्मी वो, पापा का अभिमान थी
चहक महक घर आंगन रखती, परिवार की जान थी
हर कार्य मे निपुण, कला मे बहोत माहिर थी
बनना था उसको अफसर इच्छा भी जग जाहिर थी
घर की इज्जत को वो, सीने से लगाके रखती थी
थक जाते थे सूर्य-चंद्रमा, ना मेहनत से वो थकती थी
चेहरे पे कशिश और मासूमियत, उसके बड़ा जचती थी
हसमुख था स्वभाव उसका, बात बात पे हंसती थी
करती थी नादानीयॉ पर अकल से बड़ी सयानी थी
देखके उसको लगता जैसे परियो की वो रानी थी
एक दिन निकली वो घर से जाने को जो पाठशाला
नैनो मे काजल, पहर हाथ मे वो नजर की माला
रास्ते मे एक शैतान ने, राह उसका रोक लिया
बनाना है तुमको अपना ये हमने बस सोच लिया
दूर रहो तुम मुझसे ना मै ऐसी वेसी लड़की हू
खेल-खिलोना नही मै इज्जत अपने घर की हू
बोला वो मेरी नही तो, तूझे किसी की होने नही दूंगा
दर्द दूगां ऐसी ना जिन्दगी भर मै सोने दूंगा
डाल दिया तेजाब मुख पर कर दी मानवता शर्मशार
हुई असहनीय पीड़ा तो वो करने लगी चीख पुकार
समझ ना आया उसको, ये सब क्या हो गया है
लगता है मेरी किस्मत लिख के भगवान भी सो गया है
बदल गया सब काया कल्प रह गई वो अकेली थी
ना ही कोई साथी हमदर्द ना ही कोई सहेली थी
उजियारे से हो गई नफरत अंधियारे मे अब वो रहती है
रखती थी घर आंगन रौनक जो अब वो चूप रहती है
दूर हो गई खुशियां सारी बस आँसू उसके पास है
सांसो तो चल रही हैं, पर वो जिंदा लाश है
टूट गई अन्दर से वो, ना बाकी बचा कुछ शेष है
मन ही मन उसको एक बात का द्वेष है
जो हुआ मेरे साथ वो उसके साथ भी तो होना चाहिए था
कुदरत या कानुन मे कही तो ये नियम होना चाहिए था
कुदरत या कानुन मे कही तो ये नियम होना चाहिए था
@oyebrownboi
©Brown Boi
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