अबकी बरसात हम फिर मिलेंगे
उसी पुल के छोर पर,
फिर ये बादल हमारे आँशु इकट्ठा कर
बरसेगे सिसकते होठो पर।
फिर से सर्द हवाएं जिल्द के तार छेड़ तोड़ देंगी पिछली बरसात इस बरसात तक कि खामोशी।
मेरे अश्क तुमसे कहेगे,
तम्हारे बगैर बीते सब लम्हो के अफ़साने
फिर गरजेगी जहन में पिछली मुलाकातों की यादें।
दिल फिर चला जायेगा तम्हारे साथ
रूह वही छूट जाएगी भीगती हुई अगली बरसात के इंतज़ार में।
अबकी बरसात फर मुहब्बत ठिठुरती रह जायेगी।
©Pallavi Shukla
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