क्यों उम्मीदें करें हम जहां से ?
क्यों ढूंढे वहां आप अपना नाम?
कर दें ऐसा कर्म अनोखा -
जहां खुद हीं बने एक नई पहचान । ×2
क्या हुआ गर तुम अकेले हो?
क्या हुआ गर तुम ही अंजान?
सूर्य तो अकेले ही आता है ,
लिए अपनी अलग हीं पहचान । ×2
यूं तो बहुत है दुनिया में
करते रहते जो अपमान ।
उन अपमानों की कीमत देंगे हम ,
बनाकर खुद एक नई पहचान । ×2
कितनी जिल्लत सी हो गई है दुनिया ?
जहां लेते एक दूसरे की जान ।
दिखा देंगे अंगारे बन कर ,
उनकी बुराइयों को जलाकर ,
देंगे हम एक नई पहचान ।
हां ! देंगे हम एक नई पहचान। ×2
हाँ! थोड़ा मुश्किल है ,
थोड़ा मुश्किल भी है तो क्या ?
इन्हीं का तो करना है काम तमाम , ×2
दिखा देंगे दुनिया को ,,
आखिर! क्या है हमारी पहचान ?
आखिर, क्या है हमारी पहचान।।। ×2
😎😎😎😎😎
©दीप्ति
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