अकस्मात ही एक ख्याल आया,
जीवन में कैसा ये बहाव आया।
हंसी में कैसे टाल देता खुदको,
बस बैठे बैठे ये एक ख्याल आया।
सोचा था जितना और जितना अंदाजा लगाए बैठा हूं,
जीवन किसी के अंदाजे पर नहीं चलता सहसा ये सवाल आया।
मेरी आवाजें मेरी बात चीत सुनकर रफ्ता रफ्ता,
मेरे जीवन को मुझपर और मुझे कठिनाइयों पर प्यार आया।
अरे यूंही तो नहीं हो जाती है ख़ाक शक्सियत किसी की,
आग लगी ही थी और मुझको ये ध्यान आया।
बंद पिंजरे तो बहुतेरे देखे थे हमने,
जब पिंजरे खुले ही हैं परिंदे तो बता कैसे खता का इसकी तुझे याद आया।
मलाल तो कई थे हमें अपनी जिंदगी से,
जब आरोप लगाने चाहे खुदा पर बेजुबानों का ख्याल यार आया।
देखा था मैंने बार कईयों ही मरते हुए लोगों को दोस्त,
आंखें बंद होने के बाद सदा जीने का एक अरमान आया।
मैं तो यूंही घूम रहा था मंदिरों, मस्जिदों गुरुद्वारों और चर्च में सखा मेरे,
दिल खोला ही था अपना और दरवाज़े से भगवान आया।
©Consciously Unconscious
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